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गीता प्रेस, गोरखपुर >> आशा की नयी किरणें

आशा की नयी किरणें

रामचरण महेन्द्र

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :214
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1019
आईएसबीएन :81-293-0208-x

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प्रस्तुत है आशा की नयी किरणें...

अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये


जो होना है, वह होकर रहेगा। यदि भवितव्यता निश्चय है, यदि आनेवाली दुर्घटना, दुःखभरे अवसर आनेवाले ही हैं, उनसे नहीं बचा जा सकता, तो उनसे मेल कर लेना ही ठीक है। मेल करनेसे तात्पर्य यह है कि आप अपने-आपको उसी स्थितिमें समझ लीजिये। जिन बातोंकी आप अपनी सम्पूर्ण शक्तियोंके

बावजूद बदल नहीं सकते और जो आपके हाथकी बात नहीं हैं, उनके विषयमें चिन्तित होनेसे क्या लाभ? चिन्तित होकर तो जो रहा-सहा है, उसका भी आनन्द न आयेगा।

ईसा महान्का नैतिक साहस इतिहासके पत्रोंपर स्वर्ण अक्षरोंसे लिखा रहेगा। मानवताने उनके साथ जो व्यवहार किया वह पाशविक था; किंतु उन्होंने बड़ी मनशान्तिसे उसे सहन किया। सुकरातके सामने मुत्यु-दण्डके फलस्वरूप जब विषका प्याला लाया गया, जेलरने विषका प्याला उसे पीनेके लिये देते हुए कहा, 'जो कुछ होनेवाला है, उसे निश्चिन्त होकर वहन करो।' सुकरातने निश्चिन्ततासे प्याला पी लिया और शान्तिसे निर्भयतापूर्वक मृत्यु प्राप्त की। वह जिसे बदल न सका, उसे शान्तिसे सहन किया।

जो होना है, उसे होने दीजिये। प्रयत्नोंद्वारा स्थितिको सुधारनेका प्रयत्न कीजिये! चिन्ता करनेसे कोई लाभ नहीं। चिन्ता दूर करनेके लिये इस प्रार्थनाके मर्मको समझिये-

'हे-परमेश्वर! हमें मन शान्ति दीजिये।

जिन घटनाओंपर हमारा वश नहीं, उन्हें सहन करनेकी शक्ति दीजिये।

जिन बातोंको हम बदल सकते हैं, उन्हें बदलनेका साहस दीजिये।'

जो घटनाएँ हो चुकी हैं; जो वर्ष, दिन या घंटे हमारे हाथसे छूटे हुए तीरकी भांति अब हमारे वशकी बात नहीं रहे हैं, उनपर हमारा क्या अधिकार हो सकता है? हम उन्हें किस प्रकार वापस ला सकते हैं? किसी भी प्रकार नहीं। यह मुमकिन नहीं कि उन दिनोंमें हम दुबारा जी सकें, जिनमें हम एक बार जी चुके हैं। जो घटनाएँ व्यतीत हो चुकी हैं, हम उन्हें दूर नहीं कर सकते। हाँ उनके प्रभावोंको थोड़ा-बहुत सुधार अवश्य सकते हैं।

परमेश्वरकी आनन्दमयी सृष्टिमें पुराने अनुभवोंसे केवल एक ही लाभ सम्भव है। पुराने अनुभवोंका विश्लेषण कर हम अपनी वे गलतियाँ मालूम कर सकते हैं, जिनके कारण हमें हानि उठानी पड़ी हैं। इन गलतियोंसे लाभ उठाकर उन्हें विस्मृतिके गर्भमें विलीन कर देनेमें ही बुद्धिमत्ता है।

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    अनुक्रम

  1. अपने-आपको हीन समझना एक भयंकर भूल
  2. दुर्बलता एक पाप है
  3. आप और आपका संसार
  4. अपने वास्तविक स्वरूपको समझिये
  5. तुम अकेले हो, पर शक्तिहीन नहीं!
  6. कथनी और करनी?
  7. शक्तिका हास क्यों होता है?
  8. उन्नतिमें बाधक कौन?
  9. अभावोंकी अद्भुत प्रतिक्रिया
  10. इसका क्या कारण है?
  11. अभावोंको चुनौती दीजिये
  12. आपके अभाव और अधूरापन
  13. आपकी संचित शक्तियां
  14. शक्तियोंका दुरुपयोग मत कीजिये
  15. महानताके बीज
  16. पुरुषार्थ कीजिये !
  17. आलस्य न करना ही अमृत पद है
  18. विषम परिस्थितियोंमें भी आगे बढ़िये
  19. प्रतिकूलतासे घबराइये नहीं !
  20. दूसरों का सहारा एक मृगतृष्णा
  21. क्या आत्मबलकी वृद्धि सम्मव है?
  22. मनकी दुर्बलता-कारण और निवारण
  23. गुप्त शक्तियोंको विकसित करनेके साधन
  24. हमें क्या इष्ट है ?
  25. बुद्धिका यथार्थ स्वरूप
  26. चित्तकी शाखा-प्रशाखाएँ
  27. पतञ्जलिके अनुसार चित्तवृत्तियाँ
  28. स्वाध्यायमें सहायक हमारी ग्राहक-शक्ति
  29. आपकी अद्भुत स्मरणशक्ति
  30. लक्ष्मीजी आती हैं
  31. लक्ष्मीजी कहां रहती हैं
  32. इन्द्रकृतं श्रीमहालक्ष्मष्टकं स्तोत्रम्
  33. लक्ष्मीजी कहां नहीं रहतीं
  34. लक्ष्मी के दुरुपयोग में दोष
  35. समृद्धि के पथपर
  36. आर्थिक सफलता के मानसिक संकेत
  37. 'किंतु' और 'परंतु'
  38. हिचकिचाहट
  39. निर्णय-शक्तिकी वृद्धिके उपाय
  40. आपके वशकी बात
  41. जीवन-पराग
  42. मध्य मार्ग ही श्रेष्ठतम
  43. सौन्दर्यकी शक्ति प्राप्त करें
  44. जीवनमें सौन्दर्यको प्रविष्ट कीजिये
  45. सफाई, सुव्यवस्था और सौन्दर्य
  46. आत्मग्लानि और उसे दूर करनेके उपाय
  47. जीवनकी कला
  48. जीवनमें रस लें
  49. बन्धनोंसे मुक्त समझें
  50. आवश्यक-अनावश्यकका भेद करना सीखें
  51. समृद्धि अथवा निर्धनताका मूल केन्द्र-हमारी आदतें!
  52. स्वभाव कैसे बदले?
  53. शक्तियोंको खोलनेका मार्ग
  54. बहम, शंका, संदेह
  55. संशय करनेवालेको सुख प्राप्त नहीं हो सकता
  56. मानव-जीवन कर्मक्षेत्र ही है
  57. सक्रिय जीवन व्यतीत कीजिये
  58. अक्षय यौवनका आनन्द लीजिये
  59. चलते रहो !
  60. व्यस्त रहा कीजिये
  61. छोटी-छोटी बातोंके लिये चिन्तित न रहें
  62. कल्पित भय व्यर्थ हैं
  63. अनिवारणीयसे संतुष्ट रहनेका प्रयत्न कीजिये
  64. मानसिक संतुलन धारण कीजिये
  65. दुर्भावना तथा सद्धावना
  66. मानसिक द्वन्द्वोंसे मुक्त रहिये
  67. प्रतिस्पर्धाकी भावनासे हानि
  68. जीवन की भूलें
  69. अपने-आपका स्वामी बनकर रहिये !
  70. ईश्वरीय शक्तिकी जड़ आपके अंदर है
  71. शक्तियोंका निरन्तर उपयोग कीजिये
  72. ग्रहण-शक्ति बढ़ाते चलिये
  73. शक्ति, सामर्थ्य और सफलता
  74. अमूल्य वचन

विनामूल्य पूर्वावलोकन

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